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5 Sep 2018 · 1 min read

गीतिका….. जब तक दुश्मन पर भारी हूँ

******* जब तक दुश्मन पै भारी हूँ *******
शब्दों का मैं आभारी हूँ
जब तक दुश्मन पै भारी. हूँ

सच पढकर उसको लगता है
मैं आरी हूँ …. मैं आरी हूँ

वो दाँत भींचकर रह जाता
मैं उसकी बडी लाचारी हूँ

दिन रात वो सोचे है मुझको
उसकी नींदो पै भारी हूँ

जो गिर जाता है देख मुझे
कहता खुद को मैं खिलाडी हूँ

बेशक लिखना कम आता हो
अभी जारी हूँ मैं जारी हूँ

हर वक्त कमी ढूंढे मुझमें
मैं उसकी बडी बीमारी हूँ

उसकी चाहत मैं गिर जाऊं
मैं उम्मीदों पै भारी हूँ

कह रहे मेरे सपनें मुझसे
मैं वक्त की हा हा सारी हूँ

“सागर” उलझो ना वक्त कहे
मैं तेरी बडी सवारी हूँ !!
*******
बैखोफ शायर/गीतकार/लेखक
******डाँ.नरेश कुमार “सागर”

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