गीतिका छंद
चित्राधारित —
गीतिका छंद गीत —
2122–2122,–2122–212
शब्द ही शृंगार मेरा,
*************************************
शीश पर सोहे मुकुट माँ, भाल पर बिंदिया सजी।
कर सजाएं मातु वीणा, ताल सुर सरगम बजी।।
श्वेत साड़ी अंग धारे, मात कमला वासिनी।
बुद्धि बल विद्या प्रदाता, ज्ञान विमला दायिनी।।
मात वीणा पाणि वर दो, काव्य मय संसार हो।
शारदे भाषा सँवारों, शब्द ही आधार हो।।
भाव की सरिता बहें उर, रस सरस सागर भरूँ।
शब्द ही शृंगार मेरा, मन नमन पावन करूँ।।
हृद रसीले भाव मेरे, मात की कर वंदना।
भाव उर बसते सुहाने, माथ गौरव चंदना।।
राग मीठा घोलते हैं, जब सुनो तुम गीत को।
शब्द ही शृंगार मेरा, साधती मन मीत को।।
✍️ सीमा गर्ग मंजरी
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश।