गीतिका छंद (साली का चक्कर)
गीतिका छंद
212,2212,2
212 ,2212
साली का चक्कर
********************
चाहती साली हमेशा,घूमने फिरने मिले।
खूब देखें साथ पिक्चर,बंद ना हों सिलसिले ।
सास माता चाहती थी कब किसी इतवार में
दूर लेजाकर घुमा दूँ चुलबुली को कार में
यंग साली रंग गोरा,रस भरी प्याली लगे।
बात में घोले मधुरता,नित्य दीवाली लगे।
जोड़ दी परमात्मा ने,इस तरह दिल की कड़ी।
ले गये उसको घुमाने,जून में हम पचमढी।
था बड़ा मौसम सुहाना,सुखद सुन्दर ऐरिया।
दे रहे पल पल परीक्षाजो समय था ले रिया।
साफ दिल के हम सदा से,
व्यर्थ का ना भय करें।
हो जरूरी जो जहाँ पर,हाथ खोले व्यय करें ।
हो गई साली बडी खुश,
सतपुड़ा को घूमकर ।
लौट आए घर गुरू जी,भाग अपना चूमकर ।
सोचने सबके दिलों में यह कदम रंगीन था ।
श्रीमती की दृष्टि में शक,
मामला संगीन था ।
देखते ही एकदम से,फट पड़ा ज्वालामुखी।
है फिकर किंचित न तुमको मैं पड़ी घर में दुखी।
क्या जरूरत है कहीं भी,जा रहे लेकर इसे।
हो गया कुछ ऊँच नीचा,मुँह दिखाओगे किसे।
लग रही कैसी तुम्हारी बदलती सी चाल है ।
दाल में काला हुआ या पूर्ण काली दाल है ।
बात तो कुछ भी नहीं है,जिस तरह तुम कह रहीं।
आज तक मुझको न समझा,
साथ कबसे रह रहीं।
हो भले तुम ठीक मन से,नेक दिल है हाथ में।
घास सूखी ना रहेगी,आग वाले साथ में।
हो कहीं भी इस तरह का,पंक लिपटा काम है।
तो मुसीबत याद आएकाम जीजा नाम है।
ये कहाँ कैसी उड़ेगी,है कहाँ तक शिष्टता।
एक दिन तुमको डुबा देये विचारोत्कृष्टता।
भावना में शुद्धता है,नींद से कैसी जगीं
गंदगी का ठीकरा यह,फोड़ने मुझपर लगी।
सावधानी है जरूरी,जिंदगी की राह में।
भूल जाऊँ मैं सभी को,एक तेरी चाह में।
हो अकेली एक तुम ही,प्रेम के बाजार में।
और तुम जैसी नहीं है,सुंदरी संसार में।
ताज से भी तुम अधिक हो,
खूब सूरत जानलो।
तुम मुझे दिल बैंक वाला
फिक्स का धन मानलो।
छोड अपना दल पुराना,गैर को नेता चुनूँ।
चैक हूँ जो हर किसी के साइनों से ना भुनूँ।
माफ कर दो भावना में,गर जरा बहके कदम।
पर कभी यों छोड़ तुमको,अब कहीं जायें न हम।
कान पकड़ूँ मांग माफी,विघ्न बाधा टालनी।
माफ कर धरमेन्द्र को तू,आज हेमा मालिनी।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
10/12/22