गीतिका/ग़ज़ल
एक गीतिका/गजल………….मात्रा भार-26
“गीतिका/गजल”
घास पूस लिए बनते छप्पर छांव देखे हैं
हाथ-हाथ बने साथ चाह निज गाँव देखे हैं
गलियां पगडंडी जुड़ जाएं अपनी राह लिए
खेत संग खलिहान में चलते पाँव देखे हैं॥
आँधी-पानी बिजली कड़के खुले आकाशों से
गरनार तरते पोखर गागर नाव देखे हैं॥
शादी-ब्याह सगुण-निर्गुण प्रीति चाह अनोखी
नाता-आस परस्पर रिस्ता निर-वाह देखे हैं॥
अर्थी सत्य सैकड़ों कंधे राम-नाम उच्चारें
जाति-पाति मानक मानवता भाव देखे हैं॥
गौतम तेरे शहरों को कैसे पहचाने रे
अर्थी अर्थ बिना का कंधा अ-भाव देखे हैं॥
महातम मिश्रा, गौतम गोरखपुरी