“गीता छंद”
रिमझिम गिरें हैं फुहारें,बह रही मधुर बयार।
दादुर मयूर पपीहरा,गाएं मेघ मल्हार।।
सरिता गिरि कानन प्रमुदित, और शीतल पवमान।
पावस का हुआ आगमन,ऋतु के नए प्रतिमान।।
श्यामल मेघावरि नभ में ,हरीतिमा चहुंओर।
पुष्पद पात प्रसून संग, हुई है सृष्टि विभोर।।
श्रावण मास प्रकृति सजी,संवरित है हर डाल।
छाया वसुधा पर यौवन, धानी
चुनरिया डाल।।
हरित चुनरिया ओढ़ सजी,सुंदर नव वधू रूप।
काले वारिद संग गगन,बांका वर है अनूप।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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