गीता के स्वर (8) स्मरण भाव की श्रेष्ठता
‘ब्रह्म’ क्या है ?
परम ‘अक्षर’ है ‘ब्रह्म’
‘अक्षर’-
जिसका नाश न हो
अविनाशी है यह ‘ब्रह्म’
अध्यात्म क्या है ?
‘स्वभाव’ है अध्यात्म
प्रकृति है.
ऐसे ही ‘कर्म’
भूतों का भाव उत्पन्न करने वाला
विसर्ग है.
स्मरण ‘भाव’
का अपना ‘योग’ है
अन्तकाल में मनुष्य का
‘भाव’ स्मरण
रेखांकित करता है
उसका ‘आकार’
जैसा स्मरण वैसा ‘आकार’
यह स्वभाव है
अन्तकाल की प्रतीति का.
‘अन्तकाल’ का स्मरण भाव
दिलाता है
‘भाव’ सदृश जन्म/पुनर्जन्म
या समाहित कर देता है
ब्रह्म में.
अस्तु,
‘भाव’ की श्रेष्ठता हेतु
उत्तम है-
‘योग’ साधना
सभी कालों में
‘योगयुक्त’ होना
सर्वशक्तिमान में विलिन
कराता है,
मार्ग प्रशस्त करता है.
‘ऊँ’ ब्रह्म है
एक अक्षर रूप में
‘मृत्यु’ के अन्तिम क्षण का
एक श्रेष्ठ स्मरणीय अक्षर
यही परमधाम है,
परमभाव है
जो प्रशस्त करता है
स्वर्णिम मार्ग
‘परमगति’ का,
मोक्ष का.