गीता के स्वर (16) परमगति का मार्ग
‘भय’ क्या है ?
इष्ट वियोग
और अनिष्ट का संशय
‘भय’ है
और इसकी निवृत्ति ‘अभय’.
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‘दान’ क्या है ?
न्यायोपार्जित धन
प्रदत्त करना ‘सुपात्र’ को
दान है.
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‘दम’ क्या है ?
मन को विषयों की ओर
रोकने का स्वभाव
‘दम’ है.
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‘यज्ञ’ क्या है ?
फल की चिन्ता किए बिना
प्रभु की अराधना का अनुष्ठान
ही तो है ‘यज्ञ’.
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‘स्वाध्याय’ क्या है ?
वेदाभ्यास में निष्ठा
और निरन्तर प्रयास
‘स्वाध्याय’ ही तो है.
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‘अहिंसा’ क्या है ?
दूसरों को पीड़ा न पहुँचाना
है ‘अहिंसा’
…
‘शांति’ क्या है ?
विषयों की ओर झुकाव से
इन्द्रियांे को रोकने का
निरन्तर अभ्यास
‘शांति’ है.
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‘दया’ क्या है ?
‘दया’ तो
समस्त प्राणियों के दुःख को
न सह सकने का नाम है.
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‘तेज’ क्या है ?
दुष्टों द्वारा जिस शक्ति का
मर्दन न हो सके
वह ‘तेज’ है.
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‘क्षमा’ क्या है ?
दुःख पहुँचाने पर भी
चित्त में विकार न होना
‘क्षमा’ है.
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‘दम्भ’ क्या है ?
धार्मिकता की
प्रसिद्धि के निमित्त धर्मानुष्ठान
ही तो ‘दम्भ’ है.
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‘क्रोध’ क्या है ?
दूसरों को पीड़ा पहुँचाने का
चित्त विकार
‘क्रोध’ है.
…
दैवी सम्पदा होती है
‘मोक्ष’ के लिए
और आसुरी सम्पदा
बन्धन के लिए
आसुर
अज्ञान से माहित होता है
भ्रमित चित्त
भोगों के उपभोग में फँसा,
अपने आप महानता का
धारण कर लेता है
छद्म आवरण
उसे क्या पता ?
काम, क्रोध व लोभ
नरक के त्रय द्वार हैं
आत्मा को पतन के
मार्ग ले जाने वाले
इन त्रय द्वारों पर भटकने से
बचा मनुष्य
आचरण करता है
अपने कल्याण का
और वही पात्र होता है
प्राप्त करने का
परमगति को.