गीता की महत्ता
गीता का उपदेश दिया ,
कृष्णा ने युद्ध स्थान में |
अर्जुन का उद्धार हुआ
समर क्षेत्र के घेरे में ||
दे सकते थे गीता ज्ञान ,
अन्य काल या क्षेत्र में |
कृष्णा ने फिर क्यों गीता कह दी,
महाभारत संग्राम में ||
हरी नाम को जपते जपते ,
जब विचार मग्न हम बैठेंगे |
गुरु के आश्रय मे ही रहकर ,
गीता ज्ञान को समझेंगे ||
चार पत्नियों के थे पार्थ ,
और विशाल कुटुम्ब साम्राज्य था |
क्या अर्जुन से भी बड़ा ,
कोई और गृहस्थ था ?
ना ही भीष्म , ना गुरु द्रोण,
ना युधिष्ठिर महाराज चुने |
गीता के उपदेश को देने,
वीर धनुर्धर पार्थ चुने ||
हम कलियुग के कलाकार हैं,
गीता से डर जाते हैं |
लपेट के गीता लाल वस्त्र मे ,
बत्ती फूल चढ़ाते हैं ll
ग़लती से गीता खोल भी लें,
तो विरक्ति सी आ जाती है |
समय नही गीता पढ़ने की ,
क्यूकी कर्तव्यों की पेटी बँधी है ||
जब वृधावस्था मे आकर के ,
हम धीमे हो जाएँगे |
तब हम गीता पढ़ लेंगे ,
और भव से भी तर जाएँगे ||
इसी प्रतीक्षा के चक्कर में,
ना जाने कितने जन्म व्यर्थ हुए |
जन्म मृत्यु के चक्कर मे फंसकर ,
परम पिता से दूर हुए ||
इतिहास पलटकर देख तो लो ,
कितनो ने गीता पान किया |
कितनो ने अपने जीवन बदले ,
और आसधारण उत्थान किया ||
जीवन भी एक समर क्षेत्र है ,
छः दोष हमारे शत्रु हैं |
बाहर किनसे युद्ध करे ,
जब घर के बैरी अंदर हैं ||
इस कलियुग के जीवन मे ,
गीता है तलवार समान |
गुरु हमारे मन के सारथी ,
और हृदय में केशव ज्ञान ||