गिलहरी
तीन लकीरें पीठ पर इसके,
चुस्त दुरुस्त छरहरी।
दिखने में प्यारी भोली सी,
नन्ही प्रिय गिलहरी।
अन्न फूल सब्जी फल खाती,
आम अनार व केले।
लम्बी पूंछ बदन पर रोंये,
दांत हैं बड़े नुकीले।
कर्मठ है अपने स्वभाव से,
पहली कक्षा में जाना।
कौआ के संग खेती करना,
ढेरों फसल उगाना।
पेड़ पर सरपट चढ़ जाती है,
हो बरगद या चीड़।
अपने व बच्चों के खातिर,
स्वयं बनाती नीड़।
दो से पांच तक बच्चे जनती,
सबको लाती दाना।
गिल्ली सबको प्यारी लगती,
बच्चा बूढ़ सयाना।
महादेवी वर्मा ने पाला,
नाम धराया गिल्लू।
दाना देती और पिलाती,
पानी भर कर चुल्लू।
ऐसी किमबदंति भारत में,
राम को ये थी प्यारी।
सीता का यह हाल पूंछती,
सो थी उन्हें दुलारी।
अगर गिलहरी आये आँगन,
शुभ संकेत है मानो।
धन आगमन की यह प्रतीक है,
लक्ष्मी प्रिय यह जानो।
ऐसा विद्वानों का कहना,
आयी हरि के काम।
सेतु निमार्ण में यह लघु प्राणी,
मेहनत किया तमाम।
राम गिलहरी के तन ऊपर,
प्रेम से हाथ फिराया।
श्वेत श्याम की तीन पट्टीका,
इसने पीठ पर पाया।
अंत में एक बात कहना है,
तरु इसका आवास।
पेड़ कटाई बंद हुई न,
कहाँ करेगी निवास।
गौरैया हो गयी लुप्त ज्यों,
नहीं आती अब देहरी।
वैसे धीरे धीरे वन से,
होगी लुप्त गिलहरी।