गिर रहे किरदार कैसा दौर है
गिर रहे किरदार कैसा दौर है
जो करे धोखाधड़ी वो चोर है
चोर भागा चोर भागा शोर है
चोर बोला है कहाँ पर चोर है
वो समझता था बड़ा वो चोर है
क्या पता था चोर पर भी मोर है
तंज भी करता है तेवर भी जुदा
मिल गई दौलत तो कैसा तौर है
दोस्त तो सारे मगर होते यहाँ
वक़्ते-मुश्किल साथ दे वो और है
हर तरफ़ बीमारियाँ महंगाइयाँ
मुफ़लिसी का हर तरफ़ ही ज़ोर है
रोशनी भी इल्म की पहुँची नहीं
वाँ अँधेरा ख़ूब ही घनघोर है
वक़्त के आगे सदा मजबूर वो
आदमी कितना अभी कमज़ोर है
याद रखना चाहिये सबको सदा
आख़िरी मंज़िल सदा ही गोर है
मुझको लगता है बनेगी बात अब
इक इशारा भी हुआ इस ओर है
ग़ौर से ‘आनन्द’ सुन ले सच यही
रब के हाथों में सभी की डोर है
शब्दार्थ:- तौर = ढ़ंग, गोर = क़ब्र, ग़ौर = ध्यान
डॉ आनन्द किशोर