गिरिधारी छंद विधान (सउदाहरण )
गिरिधारी छंद विधान (सउदाहरण )
[ सगण नगण यगण सगण ]
( 112 111 122 112)
12 वर्ण,4 चरण (दो-दो चरण समतुकांत)
चलते सतपथ जो भी नर है |
उनका जगमग जानो दर है ||
रखते सरल सुहाना मनको |
दुनिया सब कुछ देती उनको ||
बहती कल -कल गंगा जमना |
कहती बहकर सीखो बढ़ना ||
जग में सब कुछ मानो अपना |
पहले हितप्रिय पालो सपना ||
उनसे झुककर बातें कहना |
जिनकी शरणम् होता रहना ||
जग में वह सरदारी करते |
जिनके सृजन उड़ानें भरते ||
रहती जिस मन प्यारी कथनी |
दिखती हर पग में है करनी ||
कहते जन- जन पूरे मिलके |
तुम हो रहवर नेता दिल के ||
सुभाष सिंघई