गिरफ्त में हर सांस है
गिरफ्त में हर सांस है
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कितने दिल के पास हैं,
आये क्या हम रास हैं।
तुम ही मंदिर हो खुदा,
चरणों के हम दास हैं।
होना ना पथ से जुदा,
रह जाएगा काश है।
चारो रंगी जिंदगी,
जीवन लीला ताश है।
हर कोई लिखने लगा,
समझे जो सूरदास है।
बदला बदला प्यार है
भूखे तन की प्यास है।
मनसीरत बंदी बना,
गिरफ्त में हर सांस है।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)