गिरते – गिरते संभला हूं —— गजल/ गीतिका
गिरते – गिरते संभला हूं,
आया था भयानक झोंका।
न जाने कहां खो जाता,
बह जाती मेरी नौका।।
बीच आपके आया हूं,
अपना संदेशा लाया हूं।
वक़्त ने दिया है मुझको,
आपके साथ जीने का मौका।।
***गिरते गिरते संभला हूं***
कितना भयावह था वह मंजर,
लगा था मानो चूभा कोई खंजर।
दुआ _ मिन्नतों के सिवा क्या था मेरे पास,
अपने आप को मैंने उन्ही में झौका।।
***गिरते – गिरते संभला हूं***
और सजग मुझको है रहना ।
आप सभी से भी है कहना।।
एक नहीं अनेक बार मैंने खुद को टोंका।
न गवाएं आप भी मौका।।
*** गिरते _ गिरते संभला हूं***
राजेश व्यास अनुनय