गिरगिट
लघुकथा
गिरगिट
पड़ोसी देश के सैनिकों द्वारा सीमा पर अचानक गोलीबारी कर देने से कई सैनिक मारे गए। पूरे देश में आक्रोश व्याप्त हो गया। सभी लोगों की देशभक्ति पूरे उफान पर था। कम-ज्यादा पढ़े-लिखे आम आदमी और साहित्यकार सोसल मीडिया पर सक्रिय थे। वे जमकर अपनी भड़ास निकाल रहे थे।
कवि रसराज भी लगातार वीररस की पद्य और गद्ममय रचनाओं से सोसल मीडिया में छाए हुए थे। प्रतिदिन दो-तीन पोस्ट नियमित रूप से कर रहे थे। ढाई-तीन हजार लाइक-कॉमेंट्स और दर्जनों शेयर उनमें अतिरिक्त ऊर्जा का संचार कर रहे थे। वाकई उनकी भावाभिव्यक्ति ऐसी थी, कि मुर्दा दिल भी उठ कर खड़ा हो जाए।
एक दिन शाम को चाय पीते हुए वे अपनी श्रीमती जी से बोले, “मालती, आज तो कमाल हो गया। साढ़े चार हजार लाईक्स, ढाई हजार कॉमेंट्स, नौ सौ शेयर…”
मालती खुश होकर बोली, “सो तो होगा ही जी। मुझे आप पर बहुत गर्व है। आप लिखते ही इतना अच्छा हैं कि जी करता है आपका हाथ चूम लूँ।”
वे रोमांटिक मूड में बोले, “तो रोका किसने है जी।”
मालती झेंप गई, “आप भी ना, बेल-कुबेल कुछ देखते नहीं। मौका मिला नहीं कि कहीं भी शुरू हो जाते हैं।”
“अरे भई, तुम तो सीरीयस हो गई। मैं तो यूँ ही मजाक कर रहा था।” वे बोले।
“अरे हाँ, मैं तो बताना भूल ही गई थी, आज दोपहर कुछ स्कूली बच्चे आए थे, प्रधानमंत्री राहत कोश में सहायता राशि भेजने के लिए चंदा माँगने। मैंने आपके पोस्ट से प्रभावित होकर उन्हें पचास रुपए दे दिए।” वह प्यार से पति का हाथ पकड़ कर बोली।
“क्या…? पचास रुपए… पागल हो गई है तू…ये स्कूल वाले भी ना…. बस मौका तलाशते रहते हैं, वसूली के।” उन्होंने हाथ को झटकते हुआ कहा, “और सत्यानाश हो तेरा। एक बार पूछ तो लिया होता मुझसे। पूरा मूड खराब कर दिया। ये प्रवचन क्या तेरे लिए ही लिखा था बेवकूफ औरत ?…..”
मालती को चक्कर आने लगा था। कुछ देर पहले जिस पति पर उसे गर्व की अनुभूति हो रही थी, अब उसी पर घिन आने लगी थी।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़