गिरगिट सी दुनिया
जिसनें जैसा चाहा वैसा अफसाना बना दिया
सीधी सी बात को बातों का खजाना बना दिया
थी उसकी और मेरी यारी तो सच्ची
लोगों ने मोहब्बत का नजराना बना दिया
मैं ही नहीं था सोच में बराबर जिनकें
मैंने खुद के रास्तों का सफरनामा बना दिया।
लोगों को इतनें रंग बदलते देखकर
मैंनें भी गिरगिट का रंग चढा लिया।
जताया नहीं था हक कभी किसी पर
अब लोगों का मुझ से हक मिटा दिया।
दस्तुर जो दुनिया ने दिया था खुदगर्जी का
मैंने भी दस्तुर दुनिया का अपना लिया।