गाय माता
जी मानव तेरी क्या बिसात थी। गाय माता के कारण ही खुशियों की बरसात थी। भूल गया अपना पुराना इतिहास। जब जंगल में था तेरा वास श्री राम जब दर-दर की ठोकरें खाता था अपनी भूख मिटाने को। मजबूर था जब पेड़ों की पत्तियां खाने को। गाय माता ने आकर तेरे को पोषण आहार दिया। धन धन से भर दिया फिर तूने तिरस्कार किया। माताओं का कर्ज नहीं चुका पाएगा इंसान। चाहे तू कितनी भी खोज करें बनकर विज्ञान।