गाय को चाहिए सभी का आश्रय
गाय की रक्षा के मुद्दे पर आए दिन अराजकता फैल रही है। समाज के कुछ कथित गौ सेवकों को गाय की रक्षा का काम मिल गया है। यह बात दीगर है कि उनकी नजर उन गायों पर नहीं जाती है जो रोजाना पॉलीथीन खाकर दम तोड़ती हैं। हजारों गायों को आश्रय तक उपलब्ध नहीं है। रोजाना सड़कों पर विचरण करना ही उनके भाग्य में लिखा है। गाय की रक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। भारतीय समाज में इसको यूं ही नहीं उच्च स्थान मिला है। बेशक समाज के लिए गाय एक उपयोगी पशु है। मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहना जरूरी हो गया है कि गाय पर सियासत बंद होनी चाहिए। सियासी और मजहबी चश्मे को उतारकर मौजूदा दौर में जरूरत इस बात की है कि हर हाल में गाय की रक्षा होनी ही चाहिए। हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि इस्लाम में भी गाय के महत्व का बयान किया गया है। कुरआन में तो गाय और उसके दूध खूब तारीफ की गई है। इस्लामिक ऐतबार से भी गाय की हिफाजत बहुत जरूरी है।
गाय पर राजनीति से बेहतर है कि सरकार एक सुझाव पर अमल कर ले। वह यह कि सरकार की तरफ से यह ऐलान कर दिया जाए कि कि कल से गाय का गोबर 5 रुपये प्रति किलो और गौ मूत्र 2 रुपये प्रति लीटर की दर से खरीदा जाएगा। इस गोबर से जैविक खाद और मीथेन गैस का उत्पादन किया जा सकात है। आप विश्वास कीजिए, रातों-रात सड़क पर घूमने वाली गौ माता को स्थायी आश्रय मिल जाएगा। वह घरों की शोभा बन जाएगी और देश में खाद व गैस की किल्लत भी नहीं रहेगी। साथ ही इन चीजों की विदेशी निर्भरता भी खत्म हो जाएगी।
इस्लामी नज़रियाः गाय पर काफी समय से चर्चा चल रही है। सबसे अहम बात है कि गाय किसी मजहब का जानवर नहीं है, इसलिए इसको किसी मजहब की दीवारों में कैद करना गलत होगा। इस्लाम में भी गाय को बहुत अहम माना गया है। इसके घी-दूध में शिफा ;रोग निवारणद्ध बताया गया है। इसलिए गाय की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी एक धर्म विशेष की नही, बल्कि सर्वसामाज की है। हिन्दुस्तान में कुछ फिरकापरस्त लोग भ्रामक प्रचार कर रहे हैं कि इस्लाम गोहत्या की इजाजत देता है। कुछ उदाहरणों और तथ्यों से जाहिर है कि इस्लाम और उसके पैगम्बर गाय को हमेशा एहतराम की नजर से देखते आए हैं।
कुरआन शरीफ की आयत 16-66 में अल्लाह तआला ने फरमाया, बेशक तुम्हारे लिए चौपायों में भी सीख हैं। गाय के पेट से साफ दूध, जो पीने वालों के लिए जायके वाला है, हम तुम्हें पिलाते हैं। ‘नसीहते हादौ’ के मुताबिक हजरत मुहम्मद स. ने फरमाया कि गाय का दूध और घी तुम्हारी तंदरुस्ती के लिए बहुत जरूरी है। इसका गोश्त नुकसानदेह है और वह बीमारी पैदा करता है, जबकि इसका दूध भी दवा है। हजरत मुहम्मद स. ने बेगम हजरत आयशा से कहा कि गाय का दूध बदन की खूबसूरती और तंदरुस्ती को बढ़ाने का जरिया है। मौलाना फारूकी की संकलित किताब ‘बरकत और सरकत’ के मुताबिक हजरत मुहम्मद स. कहते हैं ’अच्छी तरह पाली हुई गायें 16 बरसों में न सिर्फ 450 गायें और पैदा करती हैं, बल्कि उनसे हजारों रुपये का दूध और खाद मिलता हैं। गाय दौलत की रानी है। तफसीर दर मंसूर के विचार हैं, गाय का बुजुर्गी ऐहतराम किया करो क्योंकि वह तमाम चौपायों की सरदार है।
बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, मुहम्मद शाह आलम जैसे मुगल शासकों ने भी गाय की कुर्बानी बंद रखी थी। बीरबल, बादशाह अकबर को मई महीने में थार ;राजस्थानद्ध ले गए। वहां बादशाह के सामने एक गाय ओर बछड़े को धूप में तपती रेत में छोड़ दिया। उस वक्त बछड़े के पैर जलने लगे तो गाय ने खुद को रेत में लेटकर बछड़े को अपने ऊपर बैठा लिया। इस वात्सल्य को देखकर अकबर बादशाह बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने कानून घोषित कर दिया कि गौहत्या कोई नहीं करेगा।
आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के खास पीर मौलवी कुतुब उद्दीन ने फतवा दिया था कि हदीस के मुताबिक जिबह-उल-बकर यानी गाय की हत्या करने वालों को कभी नहीं बख्शा जाना चाहिए। इस फतवे पर उस दौर के बुजुर्ग मुहम्मद शाह गाजी, आलम बादशाह, सैयद अता उल्ला खान फिदवी, काजी मियां असगर हुसैन, दारोगा आतिश खान हुजूर पुरनूर आदि के हस्ताक्षर हैं। ब्रिटिश काल में मुस्लिम शासकों ने अपनी रियासतों में गोहत्या बंद कराई। उनमें नवाब राघवपुर, नवाब मंगरौल, नवाब तुजाना, करनाल, नवाब गुड़गांव और नवाब मुर्शिदाबाद का नाम शामिल है। लखनऊ के उलमा ने भी उस वक्त गौ हत्या पर पाबंदी का फतवा दिया था।
मौलाना मरहूम अब्दुल बारी साहब फिरंगी महली ने सन् 1922 गाय की कुर्बानी बंद करने के लिए फतवा जारी किया था। उस वक्त महात्मा गांधी ने उनका शुक्रिया अदा किया था। गांधी जी ने कहा था कि गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाना आजादी से भी ज्यादा जरूरी है। इन तमाम तथ्यों के आधार पर सभी से गुजारिश है कि आप चाहे किसी भी धर्म से हों, अपने आर्थिक फायदे के लिए गौ हत्या न करें। अगर सचमुच गाय से प्यार है तो सड़कों पर आवारा घूम रही गौ माता को आश्रय और सुरक्षा दें। दे। देशहित में यह भी जरूरी है कि इस मुद्दे पर पिछले 5-6 साल से जारी बहस को बंद ही कर देना चाहिए।
@ अरशद रसूल