गांव याद आ रहा है
गांव से निकले थे हम ,
परदेस भा गया था जब
आज अब इस धूप में
छांव याद आ रहा है
गांव याद आ रहा है !
नीब की निंबोलियां ,
आम की वो डालियां ,
हरी पत्ती की चाय भरी कुल्हड
और वो शाम याद आ रहा है
गांव याद आ रहा है !
माचे की खाट और
ढीले रस्सी का झूला
कड़क धूप में भी आए आंगन की नींद
और दोपहरी साज याद आ रहा है !
गांव याद आ रहा है !
साइकल के हैंडल पर
कपड़े का झोला
उटपटांग पगडंडियों से बाजार का रस्ता
अंधियारे में वो आवाज़ याद आ रहा है
गांव याद आ रहा है !