गांव प्यारा
भूलता ही नहीं गाँव प्यारा।
और सुंदर नदी का किनारा।।
याद आती सदा भोर सन्ध्या।
वो मधुर प्रात का भानु न्यारा।।
वो सुनहरे सजे खेत सारे ।
भोर में चमकता एक तारा।।
आम जामुन लदे बाग उपवन।
तितलियों से ढका कुंज सारा।।
देख कोयल फिरे कूकती अब ।
प्रेमियों के हृदय का सहारा।।
देखकर मन कई आस झाँके ।
खेत लगते हमें नैन तारा ।।
लहलहाते हुए खेत अपने।
देख लगता सभी कष्ट हारा।।
कोष मानों मिला हो धरा का।
जब कभी माँ पिता ने निहारा ।।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली