गांव गली के कीचड़, मिट्टी, बालू, पानी, धूल के।
मुक्तक
गांव गली के कीचड़, मिट्टी, बालू, पानी, धूल के।
काश वही फिर से आ जाएं, दिन अपने स्कूल के।
गंदा झोला फटा पजामा होगा, फिर भी खुश होंगे,
चमक दमक ये गाड़ी बंगला, लगते मुझे फ़िज़ूल के।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी