गांव के छोरे
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आरे साहब हम गांव के छोरे हैं। बचपन से ही हम तेज तरार होते हैं, जिसे शहर लोग अपने भाषा में बदमाश भी कहते हैं।
जब आंधी तूफान आती है न तो शहर के बच्चे अपने आशियाना की ओर भागते हैं और घर में जाके दुबक जाते हैं और हम गांव के बच्चे अपनी आशियाना छोड़ कर के टिकोरा बिन्ने के लिए बगीचा की ओर दौड़ते हैं। हमें कमजोर मत समझियों। भले ही हम भोले-भाले लगते हैं, पर बचपन से ही विपरीत परिस्थितियों से लड़ना सीख जाते हैं।
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