Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jul 2020 · 3 min read

गांव के प्राथमिक हिंदी विद्यालय

चूंकि मेरा गांव बिहार (अब झारखंड) की सीमा के बिल्कुल नजदीक बसा हुआ है, इसलिये हिंदी भाषियों की संख्या भी अच्छी तादाद में थी।

मेरा जिला पुरूलिया और धनबाद, किसी जमाने में बिहार(अब झारखंड ) के मानभूम जिले के ही दो हिस्से थे। आजादी के बाद ये दो जिले बनाये गए, जिनमें से पुरुलिया जिला पश्चिम बंगाल का हिस्सा बना।

हम हिंदी भाषियों के लिए उस समय दो सीधे साधे सरकारी प्राथमिक विद्यालय और चार पांच खतरनाक किस्म के निजी प्राथमिक विद्यालय थे।

मेरे विद्यालय, श्री भजनाश्रम प्राथमिक विद्यालय को,पहले एक मिडिल स्कूल का दर्जा प्राप्त था। बाद में जब इसी नाम से एक उच्च विद्यालय का निर्माण हुआ , तो मेरा विद्यालय कक्षा ४ तक की शिक्षा तक ही सीमित हो गया।

तब से एक नई रोचक रिश्तेदारी भी शुरू हुई।

मेरे विद्यालय को “छोटी भजनाश्रम” और उच्च विद्यालय को “बड़ी भजनाश्रम” के नाम से पुकारा जाने लगा।

बात अब, उन खतरनाक किस्म के निजी विद्यालयों की करते हैं, जिसमे आधे से अधिक के संचालन करने का सौभाग्य , मेरे ही कुटुंब के लोगों को प्राप्त था।

जिनके नाम तो कुछ और ही रहे होंगे, पर ख्याति इन नामों से प्राप्त थी-

मोहन मास्टर जी की स्कूल,मदन पंडित जी की स्कूल, नंदा महाराज जी की स्कूल और शिवदुलार मास्टर जी की स्कूल और मुन्ना मास्टर जी की स्कूल

इन निजी विद्यालयों की खासियत ये थी कि ये पढ़ाई के अलावा छात्र सुधार गृह भी थे।

कुछ माँ बाप अपने उदंड बच्चों को सीधा करने लिए भी इन विद्यालयों में भेज कर चैन के सांस लिया करते थे।

घर से विद्यालय की नजदीकी भी इन विद्यालयों में प्रवेश का एक कारण जरूर रही होगी।

शिक्षकों की नियुक्ति इन विद्यालयों में उनकी मारक क्षमता के हिसाब से होती थी। सीधे साधे ,मृदुभाषी शिक्षक इन विद्यालयों के लिए सर्वथा अनुपयुक्त थे।

छात्रों का इन विद्यालयों में रोते बिलखते पहुंचने के बाद और इनकी गिनती हो जाने के बाद,

उन अनुपस्थित डरे हुए बच्चों को एक एक करके, हमारे चचेरे भाई राधेश्याम मास्टर जी पीटते और घसीटते हुए विद्यालय के द्वार तक छोड़ कर, फिर दूसरे बच्चे की तलाश में फौरन निकल पड़ते।

ये भी उल्लेखनीय है, ये स्कूल में पढ़ाते नही थे, पर बच्चों को कहीं से भी घेर कर लाने की इनकी प्रतिभा के कारण इन्हें भी ‘शिक्षक’ की मानद उपाधि प्राप्त थी।

ये दृश्य अन्य बच्चों को भी अनकहा सा सबक होता था कि वो ऐसा दुःसाहस करने का सोचे भी नहीं

इन विद्यालयों के छात्र पढ़ाई में तो निपुण होते ही थे, साथ में मुर्गा बनने की कला में भी, हम सरकारी विद्यालय के बच्चों से मीलों आगे थे।
इनका ये चार साल का अनुभव , उच्च विद्यालय में शिक्षकों की मार झेलने में भी बहुत सहायक रहता था। ये हंसते हंसते अपने पर पड़ने वाली छड़ियों को यूं झेल जाते थे कि जैसे कह रहे हों, ये भी कोई मार है!!

इन विद्यालयों में एक ‘छुट्टी बन्द” की परंपरा भी थी,( जिससे हम बचे हुए थे) कि उदंड और गृहकार्य नहीं करके लाने वाले बच्चों को विद्यालय की छुट्टी होने के बाद भी विद्यालय में ही बंद रखा जाता था, फिर बच्चों के माँ- बाप की मिन्नतों और आश्वासन के बाद ही रिहा किया जाता था।

मैं खुद भी एक दुर्घटना के कारण सिर्फ एक दिन के लिए इनका छात्र रह चुका हूँ।

हुआ यूं कि मैं अपनी भतीजी विनीता जो इनमे से एक विद्यालय के “बच्चा क्लास”(KG) मे पढ़ने का गौरव हासिल कर चुकी है, को अपने विद्यालय जाते हुए , साथ लेकर बस छोड़ने गया था कि एक शिक्षक ने डांट कर मुझे उसके ही विद्यालय में बड़ी कक्षा में पढ़ने बैठा दिया था!!!

आज भी अपने बड़े बुजुर्गों द्वारा मेरा सरकारी विद्यालय में दाखिले के निर्णय का,

मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ।।।

Language: Hindi
5 Likes · 2 Comments · 568 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Umesh Kumar Sharma
View all
You may also like:
"बन्दर बना आसामी"
Dr. Kishan tandon kranti
अपना सा नाइजीरिया
अपना सा नाइजीरिया
Shashi Mahajan
*रात से दोस्ती* ( 9 of 25)
*रात से दोस्ती* ( 9 of 25)
Kshma Urmila
हर एहसास
हर एहसास
Dr fauzia Naseem shad
जो गूंजती थी हर पल कानों में, आवाजें वो अब आती नहीं,
जो गूंजती थी हर पल कानों में, आवाजें वो अब आती नहीं,
Manisha Manjari
अमीरों का देश
अमीरों का देश
Ram Babu Mandal
जिस तन पे कभी तू मरता है...
जिस तन पे कभी तू मरता है...
Ajit Kumar "Karn"
मानवता का है निशान ।
मानवता का है निशान ।
Buddha Prakash
फिर फिर मुड़ कर
फिर फिर मुड़ कर
Chitra Bisht
Shankar lal Dwivedi and Gopal Das Neeraj together in a Kavi sammelan
Shankar lal Dwivedi and Gopal Das Neeraj together in a Kavi sammelan
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेता है उसको दूसरा कोई कि
जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेता है उसको दूसरा कोई कि
Rj Anand Prajapati
जग-मग करते चाँद सितारे ।
जग-मग करते चाँद सितारे ।
Vedha Singh
गले से लगा ले मुझे प्यार से
गले से लगा ले मुझे प्यार से
Basant Bhagawan Roy
रमेशराज के दो लोकगीत –
रमेशराज के दो लोकगीत –
कवि रमेशराज
माँ तुम सचमुच माँ सी हो
माँ तुम सचमुच माँ सी हो
Manju Singh
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
वतन से हम सभी इस वास्ते जीना व मरना है।
वतन से हम सभी इस वास्ते जीना व मरना है।
सत्य कुमार प्रेमी
बदल गया परिवार की,
बदल गया परिवार की,
sushil sarna
Lines of day
Lines of day
Sampada
प्रेम और घृणा से ऊपर उठने के लिए जागृत दिशा होना अनिवार्य है
प्रेम और घृणा से ऊपर उठने के लिए जागृत दिशा होना अनिवार्य है
Ravikesh Jha
लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
Pramila sultan
क्षितिज के उस पार
क्षितिज के उस पार
Suryakant Dwivedi
ईश्वर शरण सिंघल मुक्तक
ईश्वर शरण सिंघल मुक्तक
Ravi Prakash
🙅#पता_तो_चले-
🙅#पता_तो_चले-
*प्रणय*
देश आपका जिम्मेदारी आपकी
देश आपका जिम्मेदारी आपकी
Sanjay ' शून्य'
जाने किस मोड़ पे आकर मै रुक जाती हूं।
जाने किस मोड़ पे आकर मै रुक जाती हूं।
Phool gufran
सोच ही सोच में
सोच ही सोच में
gurudeenverma198
विश्रान्ति.
विश्रान्ति.
Heera S
तेरा लहज़ा बदल गया इतने ही दिनों में ....
तेरा लहज़ा बदल गया इतने ही दिनों में ....
Keshav kishor Kumar
3910.💐 *पूर्णिका* 💐
3910.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
Loading...