गृहस्थी (कहानी)
गांव में रचना मसाला पापड़ एवं सिलाई केंद्र चलाती थी । पति जाने के बाद अकेली हो गयी वो उसके दोनों बेटे शहर में नौकरी करके अपने परिवार का गुजारा करते । रचना ने हिम्मत न हार, सरकार से की लोन की गुहार ,गांव की महिलाओं को बनाया अपना परिवार और गांव की परंपरा-संस्कृति का तहेदिल से स्वागत करते हुए शुरू किया स्वयं का व्यवसाय, जीविका का चल निकला उपाय ।
वक्त गुजरने के साथ शहर में बढ़ती मंहगाई के कारण बेटों के परिवार का गुजारा नहीं हो पाने के कारण बहुओं ने भी सासुमां को मदद करने की ठानी । आखिर में गांव की परंपरा और संस्कृति ही गृहस्थी में रंग लाई ।