गांव की दोस्ती
दोस्ती केवल एक शब्द नहीं है जिसे हम किसी वाक्य के फर्मिलिटी के लिए प्रयोग करें। बल्कि दोस्ती एक विश्वास है जो किसी दो अंजान को बिना किसी रूल,जाति, धर्म को एक-दूसरे से जोड़ता है। केवल ना सिर्फ दुःख-सुख बल्कि हर परिस्थिति का साक्षी होता है
दोस्ती विषय ही ऐसा है जिसका किसी एक जगह अंत नहीं हो सकता है जितने लोग हैं ,उतने ही अच्छी तरह से दोस्ती का परिभाषा दिया जा सकता है
अब मैं सीधे अपने कहानी-गांव की दोस्ती
आप सब के सामने रख रहीं हूं ।।
गांव में दोस्ती कुछ अजीब तरह से होते हैं।
ख़ास तरह से, लड़कियों की दोस्ती यानी सखि।
आजकल तो दो लोग मिले और खुद ही अपने आप को दोस्त समझने लगते है चाहे लड़का हो या लड़की सब का वही हाल है।
जबकि पहले कि दोस्ती का कुछ अपना रस्म होता था।जिसकी साक्षी धरती मां होती थीं और वह दोस्ती उम्र के साथ चलतीं थीं। चाहे लड़कियां ससूराल क्यों ना चली जाएं, दोस्ती खूब निभती थी
लोग उन दिनों दोस्ती के मिसालें भी देते थे।
दोस्ती के नियम कुछ इस तरह से होते थे
जैसे किसी विवाह में मामा अपनी बहन को इमली घोटाते यानी आम के पत्ते को सात बार भांजी के माथे से घूमाकर मां के दांतों से कटवाकर अपनी बहन को पानी मिलाते हैं ठीक उसी तरह दोस्ती हमारी होती थी ये अलग बात है कि हमारी दोस्ती किसी अग्नि कुंड या ब्राह्मणों के सामने नहीं बल्कि धरती को साक्षी मानकर होती थीं
हमलोग आम के पत्ते के जगह पर दूब का प्रयोग करते थें। दोनों दोस्तों के हाथों में दूब का एक-एक बड़ा लड़छा होता था और हम दोनों एक-दूसरे के हाथों से माथे से फेरते हुए दांत से काटते थे।ये प्रयोग सात बार करके जमीन में थोड़ा गाढ़ा खोदकर
अपनी मुंह से उन दूबो को निकालकर उसे गढ़े में दबा देते थे और धरती मां से बिनती करते थे हमारी दोस्ती पर कोई आंच ना आए।
अगर बैशाख, जेष्ठ के महिने हों तो विशेष ध्यान देते थे। ताकि हमारी दोस्ती सूरज के तपस में जलकर मिट ना जाए ।
ये कहने का मतलब है कि जिस दूब को हम जमीन में डालते हैं वह कहीं ज्यादा गर्मी में अपने दम ना तोड़ दें। क्योंकि उस दूब को जमीं से अपने वास्तविक रूप में जब तक ना आ जाए यानी घास के रूप में।
तब तक दोस्ती पक्की समझी उन दिनों ना जाती थी, इसलिए दोनों दोस्तों की ये ज़िम्मेदारी होती थीं कि वहां किसी पौधे की तरह देख-भाल करते हुए पानी समय-समय पर दें। ताकि जल्दी से वह टूकडा घास बनकर जमीं से निकल जाए।
और जब ऐसा हो जाता था तो वह दोस्ती पक्की वाली दोस्ती होती थीं।
नीतू साह(हुसेना बंगरा)सीवान-बिहार