गांव और शहर
गांव को गांव ही रहने दो
उसे मत बनाओ शहर।
उसे मत बनाओ शहर।
जहां घुला है ज़हर।
यहां रिश्ते में रसता है।
अपनापन बसता है।
क्या जानो इस अपनापन की कदर।
उसे मत बनाओ शहर।
बोली में मिठास है।
जीवन की आस है।
कितना भी हो अभाव
छलके है सेवा भाव।
क्षणिक नहीं, पाओगे हर पहर
उसे मत बनाओ शहर।
फसलें लहलहाती।
सोंधी गंध आती।
जब चलती बयार।
चित होता गुलज़ार ,
पड़ते है जब कदम खेतों की डगर
उसे मत बनाओ शहर।
अवधी है, भोजपुरी है।
सोहर है, कजरी है।
चैती है, फाग है।
बिरहा का राग है।
मिले न भटको चाहे दर बदर
उसे मत बनाओ शहर।
बुवाई है, सिंचाई है।
कटाई है, मड़ाईं है।
ताल है, तलैया है।
भैंस है, गईया है।
बारिश में दिखे उफनाती नहर
उसे मत बनाओ शहर।
अन्नदाता किसान है।
वही तो भगवान है।
श्रम से मिले न धन
मिट्टी हो जाए कंचन।
थके न रुके दिन या दोपहर
उसे मत बनाओ शहर।