गांधार सुता
गांधार सुता गांधारी,
अपनी किस्मत से हारी,
भीष्म ने गांधार को जीता,
छूट चला जहाँ बचपन बीता,
पिता नतमस्तक कुरुओं के सम्मुख,
बन महारानी कैसे दिखलाऊ मुख,
मेरे सम्मान को रौंदा!ओ चंद्रवंशी,
कहाँ गई मेरी खिलखिलाती हँसी,
अभी नहीं देखी दुनिया सारी,
मेरे लिए तो हैं सब अंधियारी,
छूट चली मेरे बचपन की यारी,
आज में अपना स्वाभिमान हारी,
कुरुओं ने नारी को समझा वस्तु,
फिर भी मिला इनको ही तथास्तु,
कभी काशी, कभी गांधार को रौंदा,
अपने भुजबल से सबको जीता सदा,
मेरा स्वामी ही मेरा संसार अब,
उनके लिए तो हैं अंधियारा सब,
स्वामी के बिना संसार अधूरा,
फिर क्यों देखूँ मैं जग सारा,
सुबल सुता ने बांधी आंखों पर पट्टी,
शकुनि ने लगा ली प्रतिशोध की मिट्टी,
छल कपट में था बड़ा ही वो चतुर,
अपमान में जल रहा था वो पामर,
गांधारी थी शिव की बड़ी पुजारिन,
मिला आशीष होंगे सुत सौ एकदिन,