गांधारी की मूर्खता
सुन गांधारी ! यह तेरी मूर्खता थी ,
जो पति को नेत्र हीन जान कर,
तूने अपने नेत्रों में ली पट्टी बांध ।
इसके स्थान पर तू पति के नेत्र बनती ,
और अपनी संतान को लेती ,
अनुशासन और नैतिकता की रस्सी से बांध ।
तो आज यह संसार तेरी पूजा करता।
सम्मान केवल शिव भक्त होने का पाया,
परंतु तूने अपने जीवन में की नहीं कोई ,
समझदारी वाली बात ।
तेरे कुटिल भाई शकुनी का क्या काम था ?
तेरे ससुराल में ,यह ना थी क्या सोचने की बात ?
सुन गांधारी ! कृष्ण ने नहीं ,
तेरे भाई ! हां तेरे सगे भाई ने तेरे ,सुखी ,
परिवार की नींव हिलाई ।
जागकर वैमनस्य ,दोनो कुलों में ,
परस्पर शत्रुता बढ़ाई।
यह महाभारत तेरे अपने भाई ने करवाई ।
यदि तेरी बुद्धि काम करती ,
तो तू यह मूर्खता न करती ।
अपने पति की आंखें बनकर ,
उसे जग की सच्चाई दिखाती ।
उसे भटकने से बचाती ।
और अपनी संतानों को भी नियंत्रण में रखती ।
हाय गांधारी! काश तू अपने नेत्रों में ,
अपने अंधे पति के प्रति अंधे प्रेम की ,
पट्टी न बांधती ।