गाँव बदलकर शहर हो रहा
गाँव बदल कर शहर हो रहा।
हवा बदलकर जहर हो रही।
हो रहा मुश्किल यहाँ पे जीना,
धरा गाँव की अहर हो रहा।
गाँव – घरों के सौन्दर्यो पर ,
आधुनिकता का असर हो रहा।
नदी का पानी,खेत खलिहानी,
धीरे- धीरे सह – पहर हो रहा।
गाँव बदल कर शहर हो रहा।
हवा बदल कर जहर हो रही।
रिश्ते-नातों का मतलब भी,
अब केवल लट बहर हो रहा।
कच्ची गलियों की खुशबू पर,
कंक्रीट सीमेंट असर हो रहा।
जार जार हो रहा है दिल मेरा,
कूचे का क्या ये हसर हो रहा?
चुप्पियाँ बैलों के घुँघरू की,
किस्से गाँव की बयां कर रही,
खेतों में ट्रैक्टर का बसर हो रहा।
कुल्हड़ – सुराही बेघर हो रहा।
अपने – अपनों से भी बात करे।
इतनी फुर्सत है, अब कहाँ किसे?
खामोशियों का अब पहर हो रहा।
गाँव बदल कर अब शहर हो रहा।
गाँव की मिट्टी, गाँव की बातें
लिख लिख रवि मुश्तहर हो रहा।
गाँव बदल कर शहर हो रहा।
हवा बदलकर जहर हो रही।
©®रविशंकर साह “बलसारा”
बैद्यनाथ धाम, देवघर, झारखंड