“गाँव की सड़क”
यह कहानी है उस गाँव की जिसमे हर साल या तो अकाल पड़ता था या फसल कम होती थी. मगर गाँव के लोग बड़े खुद्दार थे. वे अपनी माटी को माँ की तरह पूजते थे. और माँ जो दे, जितना दे उसी में सन्तुष्ट रहते थे. ना सरकार से और ना ही अपने नसीब से कोई शिकायत. गाँव में एक छोटा सा बाजार हुआ करता था, जहाँ से उनको जरूरत का हर सामान मिल जाया करता था. छोटे गाँव का एक छोटा सा पंचायत भवन था. उससे सटी एक प्राईमरी स्कूल थी. अस्पताल की जगह एक नाडी वैध थे, मंदिर, पोस्ट ऑफिस, प्याऊ, कुआ, पशुओं के लिए एक तालाब, यानि पुराने जमाने के गाँव की तरह ये गाँव भी आधुनिक सुख सुविधाओं से वंचित था मगर सब लोग मिल जुल कर सामाजिक संरचना के अतिरिक्त एक दूसरे के सुख दुःख में परिवार की तरह रहते थे. कुल मिला कर सब लोग अभाव में भी अपने हालात से सन्तुष्ट थे. समय का चक्र अपनी रफ्तार से चल रहा था. सरकारी योजना के तहत गाँव की पंचायत एवं पोस्ट ऑफिस को एक एक टेलीफोन आवंटित हुआ. डिपार्टमेंट के अधिकारी आये उन्होंने सरपंच, पोस्टमास्टर, स्कूल मास्टर, वैधजी, और कुछ गणमान्य लोगों को उसके उपयोग के बारे में बताया. कई दिन तक उसकी चर्चा चलती रही फिर सब नोर्मल हो गया. कुछ समय बाद एक बस उस गाँव से होकर शहर आने जाने लगी, बस सुबह शहर जाती और शाम ढले लौटती. गाँव के दुकानदारों को इससे बड़ा फायदा हुआ. जहाँ उन लोगों को ऊंट गाड़े या बैल गाड़ी से भोर में निकलना पड़ता था और देर रात वापिस आ पाते थे, ज्यादातर समय तो यात्रा में ही बीत जाता था, और फिर सर्दी, गर्मी, बरसात, आंधियां जैसी कई मुसीबतों का सामना भी करना पड़ता था. उनके लिए तो ये वरदान साबित होने लगी. गाँव वालों के रिश्तेदार जो अन्य गाँवों में रहते थे जब उन्हें पता चला तो वे भी खुश हुए, लेकिन जहाँ सुविधाएँ आती है तो परेशानियां भी साथ में आती ही है. पहली समस्या आई वैध जी को. जहां सब लोग उन्हें ही भगवान मानते थे अब वे इलाज के लिए शहर जाने लगे, अब शहर जाने लगे तो कई बार घर में उपयोग होने वाली वस्तुएं भी वहीँ से लाने लगे. इस तरह से गाँव में साईकिल, गाड़ी, मिक्सी, रेडीमेड कपड़े, फोन, टीवी और भी कई वस्तुएं आने लगी. गाँव के लोग अब शहर में काम करने जाने लगे. जिससे लोगों का रहन सहन जो सामान्य था वो मध्यम होने लगा मकान कच्चे से पक्के बनने लगे। नाई की दूकान, पान का गल्ला, कोस्मेटिक की दुकानों में भी आधुनिकता नजर आने लगी. धीरे धीरे गाँव के लोग देश और दुनिया से जुड़ने लगे. शिक्षा का स्तर भी सुधरा. गाँव की स्कुल प्राईमरी से माध्यमिक हो गई. जिससे आस पास के गाँवों के बच्चे भी पढने आने लगे, गाँव की रौनक चौगनी हो गई, अब मौहल्ले के गुवाड़ शाम ढलते ही बच्चों से भर जाते थे. समय अपनी गति से चलता रहता है. गाँव में पक्की सड़क बन गई. कहने को तो यह विकास के पथ पर अग्रसर होना था मगर गाँव के लिए यह सड़क शुभता लेकर नहीं आई. जहाँ दिन में एक बार बस आती थी अब उसके चार चक्कर लगने लगे. लोग शादी विवाह में खरीदी शहर से करने लगे, शहर से रेलगाड़ी जाती थी जिससे लोग दिल्ली, कलकत्ता, आसाम, मुम्बई, सूरत आदि जगहों पर नौकरी, व्यापार के लिए जाने लगे. चुनावों में भी अब नेता लोग आने लगे. छोटी पंचायत अब बड़ी हो गई. खेती सिर्फ चार महीने होती थी बाकी समय गाँव के युवा शहर में काम करने जाने लगे जिससे उनकी आमदनी बढ़ने लगी, उनका जीवन स्तर मध्यम से उच्च मध्यम होने लगा, बच्चे उच्च शिक्षा पाने लगे, उन्हें सरकारी नौकरी मिलने लगी, मकान भी पक्के और दो मंजिला बनने लगे. कुल मिला कर ये कहना पडेगा कि गाँव की सूरत बदलने लगी और आधुनिकता हर घर में घुसने लगी. एक तरफ सड़क पक्की क्या हुई मानो गाँव को नजर लग गई और दूसरी तरफ देश दुनिया में नये नये आविष्कार हो रहे थे. जिससे कल तक जो लोग शहर की तरफ आकर्षित हो रहे थे वे अब देश विदेश भी जाने लगे. शास्त्र कहते हैं “पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख हाथ में माया” जिसके परिणाम स्वरूप लोग अपने परिवार सहित शहरों में रहने के लिए जाने लगे. युवा शहर जाने लगे और बुजुर्ग गाँव में रहने लगे जिसके कारण धीरे धीरे आम आदमी के हाथ से खेती छूटने लगी. आज उस गाँव की हालत यह है कि उस गाँव के कई लोग करोड़पति, अरबपति है, उस गाँव में हर वो सुविधा है जो एक बड़े शहर में है परन्तु नहीं है तो वे लोग या उनके बच्चे जो कभी उसके गुवाड़ की माटी में खेलते थे. वो गाँव की सड़क जिसने कभी उन्हें शहर का रास्ता दिखाया था वो आज कडकडाती सर्दी में, चिलचिलाती धूप में, बरसती बरसात में, चलती आँधियों में अपनों की राह देख रही है. शायद उसे पता नहीं कि जो एक बार चले जाते हैं वो लौट कर नहीं आते. मित्रों वो कोई और नहीं आप और हम हैं, वो गाँव किसी और का नहीं हमारा अपना है. जीवन में एक बार फिर से मुड़ कर उससे मिलने अवश्य जाइयेगा. उसे अच्छा लगेगा और आपको भी…