गाँव की गोरी
गांव कि गोरी –
गांव कि गोरी का सजाना, सवरना हसरत हस्ती कि मस्ती अल्हड़पन गाँव कि गलियों से गुजरना ।।
जंवा जज्बात के ख्याब खयालों में उतरना जमीं के जर्रे का नाज गांव में उगते सूरज ढलते शाम तराना।।
जमीं आसमां चंदन बिजली पानी जैसे चाहतों का गुजरना ,सुर्ख सूरज कि लाली बादलों के आगोश में जन्नत कि परी के पांव जमीं पे उतरना।।
बारिश कि बूदों का लवों पर शीप के मोती जैसे चमकना बाहारो कि बरखा का दिल कि गली में उतरना ।।
सर्द चाँद चाँदनी में दिलो कि दस्तक जज्बे का पिघलना।।
आसमान कि शान कड़कती गरजती शायराना अंदाज़ बोलती गीत ग़ज़ल का नाज़ नजराना।।
तपती गर्मी में पसीने में नहाई वासंती वाला खुशबू दिलों गहराई के तूफ़ान का उठना गांव कि शोधी माटी कि खूबसूरत अदा अंदाज़ का निखरना।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।