गाँव की खुश्बू
*****गाँव की खुश्बू (गीत)*****
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गाँव की खुश्बू रग-रग में समाई,
जहाँ भी देखूँ,दे पग – पग दिखाई।
पीपल-बरगद-नीम की घनी छाया,
जहाँ पर प्यारा सा बचपन बिताया,
बाल सखा संग खूब पींघ चढाई।
जहाँ भी देखूँ, दे पग – पग दिखाई।
पनघटों पर गौरियों की वो टोली,
हंसी ठिठोली से भरें वो झोली,
पानी की गगरिया कमर लटकाई।
जहाँ भी देखूँ,दे पग – पग दिखाई।
कोयल की कूँ-कूँ मीठी सी बोली,
रंग-बिरंगी इन्द्रधनुषी सी होली,
फूलों के चमन से थी महक आई।
जहाँ भी देखूँ,दे पग – पग दिखाई।
ताल-तलैया में पंकज हैं खिलते,
सूर्यस्ती-लालिमा नीर में दिखते,
निर्मल देहात की भोर है मस्तानी।
जहाँ भी देखूँ,दे पग – पग दिखाई।
बैलों के गले में बजती घंटियाँ,
खेतों में नाचे बलखाती परियाँ,
रूप-यौवन की खूब मस्ती छाई।
जहाँ भी देखूँ,दे पग-पग दिखाई।
मनसीरत देखता लहराते धान,
खुशदिल बड़े हैं गाँव के किसान,
शहर की लगती है फ़ीकी मिठाई।
जहाँ भी देखूँ,दे पग-पग दिखाई।
गाँव की खुश्बू रग -रग में समाई,
जहाँ भी देखूँ,दे पग-पग दिखाई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)