गाँव की एक शाम
मंद मंद बहती हवा,
वो बुलबुल का गाना ,
सिर पर टोकरी रख,
माताओं का खेत से घर जाना ,
बहुत याद आता हैं,
वो दूर खेत मे चलते,
ट्रैक्टर की आवाज़,
वो दाने लेकर लौटता
चिंड़ियों का समाज,
वो देखते देखते
डोड़े चुराकर तोते का उड़ जाना,
बहुत याद आता हैं.
शाम के धंधलके मे ,
तपस्वी जैसे दिखते पेड़ .
औस से सनी,
वो खेत की गीली मेड़,
मेड़ पर पाँव का फिसल जाना,
बहुत याद आता हैं.
वो गाँव के मंदिर से आती,
घंटी की धीमी आवाज़ ,
पेड़ों मे छुपकर,
वो झिंगुरों के बोलने का अंदाज.
खेत मे चूहों का,
सर्र …..से डरा कर भाग जाना,
बहुत याद आता हैं.
रखवाली करते,
रात मे बनते वो गरम पकौड़े.
भूत जैसे दिखते,
लहराते वो काक भगौड़े.
देखकर उन्हें छोटु का डर जाना,
बहुत याद आता हैं.
जी. एस. परमार
खानखेड़ी (नीमच) म. प्र.