*गाँव का पनघट*
लघुकथा
गाँव का पनघट
मेरे निवास की जगह एक गाँव,जिसकी आबादी करीब 500 सौ के लगभग,सभी जाति के व्यक्तियों के साथ करीब 4या 5 जाति होंगी,हमारा गाँव आज भी उतना विकसित नही की आज की आधुनिक सुविधाएं मिल सके,गाँव के कुछ पक्के मकान बालो के पास जरूर अपने अपने पानी की निजी व्यवस्था है लेकिन आज भी एक तिहाई से ज्यादा घर पनघट पर ही निर्भर है,ऐसे ही एक घर है जो पनघट पर निर्भर है,उनके घर मैं महज 3 सदस्य दो महिला एक पुरुष है(मैं स्वयं),एक बुजुर्ग महिला (मेरी माँ)उम्र करीब 50 वर्ष,एक बहु (मेरी पत्नी)25वर्ष,और एक बेटा 30 वर्ष (मैं स्वयं)
ये छोटा सा परिवार,पूरा गांव अपनी जरूरत नहाने,धोने,पीने,जानवरो,और अन्य कार्यो के हिसाब से पनघट पर रस्सी बाल्टी,डब्बे,टँकी,आदि से पानी को निकलता है और अपनी पानी की जररूरत पूरी करता है,यू ही एक दिन की बात है,माँ पनघट पर पानी लेने गयी तो देखा कि पास ही के गाँव की एक पढ़ी लिखी,समझदार महिला चर्चा कर रही कि हमारे गाँव का पनघट सूख गया है,क्योकि हमारे दुवारा लगातार कुएं,बाबड़ी,ताल,पोखर,झरना,हेंडपुम्प, नदी,नाले,बाँध,आदि से पानी तो निकाला जारहा है,लेकिन उसका बचाव कैसे हो इस पर ध्यान नही है,
इस बात को जब मैंने पास खड़े होकर सुना तो समझा कि आज ये पास बाले गाँव की बात है,कल हमारे गाँव की भी हो सकती है,
पास ही खड़े मेरी ही हम उम्र एक भाई से मैंने कहा क्यो न हम कुछ प्रयास करे जल पनघट को बचाने के लिये,तो मैंने कम पढ़ाई की थी पर एक बार ग्राम पंचायत मैं आये साहब ने बताया था कि गाँव मे जल बचाव का उपाय तो उनके बताए अनुसार,हम दोनों ने मिलकर उस पनघट के पास ही कुछ दूरी पर एक 5 हाथ लम्बा चौड़ा गड्ढा खोदा और एक पनघट की नाली बनाई और फिर उस गड्ढे को कुछ रेत पत्थर से परत बना दी,आज उस गड्ढे मैं पनघट का पानी जाता है जो कि जानवरो के पीने के काम आता है,जो पानी उस गड्ढे मैं बच जाता है वह वही पर धरती दुवारा सोख लिया जता है ,,और अगर ज्यादा हो जाये तो पास ही कुछ जगह मैं फूलों के पौधे भी लगाए है जिनको भी वो पानी मिल जाता है इस तरह से उस पानी के कई उपयोग हम कर पा रहे है,आज भी कई साल बाद हमारे गाँव का पनघट जिंदा है,
कुछ दिनों पहले ही हमारे गाँव मे कच्ची सड़क बनी है,उसके पास ही हमने एक तालाब बनाया है जिसमे बरसात का हम पानी भरकर रखते जिससे हमारी ऊपरी जरूरतों मैं पूरा गांव उपयोग करता है,
अब तो मेरा गाँव भी बिजली,सड़क की सुविधा से जुड़ गया है,आज हम भी मोटर पंप हेंडपम्प पर पानी भरते है लेकिन एक छोटे से प्रयास से आज भी हमारे गाँव का पनघट जिंदा है जो कि एक निशानी और पहचान है,हमारे बचपन की हमारी धरोहर है हमारे आने बाली पीढ़ी को हम बता पाएँगे,
अभी सर्दी के दिनों मैं हमारे गाँव मे शहर से कुछ रिश्तेदार आये जो कि गाँव की कच्ची सड़क से चलकर आये और उन्होंने गाँव की तालाब विद्युत खम्बे विजली,पानी की जरुरतो को समझा और सभी से चर्चा की उनके साथ एक छोटी बच्ची भी आई जिसको गाँव के पनघट दिखाया,उसके आसपास की फूल फुलवारी,तितली, आदि कई चीज,आज मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था क्योंकि उस बेटी को मैं वो पनघट दिखा पाया जो कभी न देख पाती,,
?मानक लाल मनु?