गाँव का खत
एक गाँव ने खत लिखा किसी शहर के नाम
भाई तुम इतने चर्चित, मैं इतना गुमनाम ।
पले बढ़े हम एक फिज़ा में देश की हम संतान
नहीं पूछ हमारी कोई ,खूब तुम्हारी शान ।
चिकनी-चौड़ी सड़क तुम्हारी,सरपट दौड़ लगाती
इधर हमारी उखड़ी सड़कें हमको मुंह चिढ़ाती ।
न फसलो के दाम उचित हैं न हाथों को काम
एक गाँव ने खत लिखा किसी शहर के नाम ।
सारा सुख सारी सुविधाएं तुमने रख ली पास
हमको भी कुछ मिल जाता,यही हमारी आस ।
सुख-सुविधा चकाचौंध का तुमको है अभिमान
मेरे गर्व वही हैंं बंधु खेत और खलिहान ।
दिन पर दिन बढ़ती जाती उधर तुम्हारी शान
किंतु हमारी हालत पर नहीं किसी का ध्यान ।
इतना अभाव यहां है बंधु फिर भी नहीं मलाल
सुख संतुष्टि यहाँ बहुत है, जैसा भी है हाल
यहाँ रिश्तों की महक निराली
सुख-दुःख साथ निभाते हैं ।
उधर तुम्हारे निकट पड़ोसी
शरमाते-घबराते हैं ।
किंतु मुझे फिर भी भाई
प्रिय है मेरा धाम
अगले खत में फिर लिखूंगा एक नया पैगाम ।।