गाँव और शहर
कौन कहता है कि शहर बुरा है,
फर्क सुविधा और सुकून का है।
सबकुछ हर जगह मिलता कहाँ है,
बात दुविधा और जूनून का है।
कहीं गिट्टी कम कहीं मिट्टी ज्यादे।
कहीं मिट्टी कम और कहीं गिट्टी ज्यादे।
सच कहो क्या एहसास भावनाएं गाँव जैसी हैं?
क्या असुविधाओं के सागर में उम्मीदें नाँव जैसी हैं?
किसी के साथ हुई दुर्घटना पर, फिल्मांकन कौन करता है?
किसी के मरने के हर पल का चित्रांकन कौन करता है?
कैमरे छोड़कर गर उस आदमी को उठा लेते।
उसको क्या उसके पूरे परिवार को बचा लेते।
जब बात आदमी से आदमियत की होती है।
चर्चा गाँव के हर एक नेक नीयत की होती है।
-सिद्धार्थ