गाँधी मेरे देश की..
【४२५-४३०】
गाँधी मेरे देश की, सुनो व्यथा तुम आज।
लूट मची चहुँओर है, कैसा आया राज ।।
सिसक रहीं है आबरू, गली-गली बाजार ।
देखो धूमिल हो रहे, बच्चों के संस्कार ।।
बात- बात पर झगड़ते,अपने ही यह लोग ।
गांधी मेरे देश में, कैसा फैला भोग ।।
बदल गए रिवाज सभी, बदल गए सब लोग ।
सत्य अहिंसा छोड़कर, पाले नाना रोग ।।
जब मिलता है मुफ्त का, कोई करें न काम ।
कामचोर बन लोग ये, नित झलकाते जाम ।।
गाँधी के आदर्श पर, जो चलते है लोग ।
जीवन में उनके सदा, सत्य प्रेम का योग ।।
—-जेपी लववंशी