ग़ैरों में दम कहाँ है, अपने ही हैं डुबोते
ग़ैरों में दम कहाँ है,
अपने ही हैं डुबोते ।
हमको वही रुलाते
हम चैन जिनपे खोते !
ग़ैरों में दम कहाँ है अपने ही हैँ डुबोते ।
किस से करें शिक़ायत किस से करें लड़ाई
इल्ज़ाम वो लगाते जो अपने ही घर के होते
ग़ैरों में दम कहाँ है,
अपने ही हैं डुबोते ।
हमको वही रुलाते
हम चैन जिनपे खोते !
कबसे थमे खड़े हैं कि वो संग वो आ जायें
इंतज़ार में हैं उनके जो दुश्मन के घर में होते ।
ग़ैरों में दम कहाँ है,
अपने ही हैं डुबोते ।
हमको वही रुलाते
हम चैन जिनपे खोते !
मतलब जो उनको होता वो हमको ढूंढते हैं ।
जब हमको मतलब होता वो दूजे जहाँ में होते
ग़ैरों में दम कहाँ है,
अपने ही हैं डुबोते ।
हमको वही रुलाते
हम चैन जिनपे खोते !
अपना नहीँ है कोई मतलब का ये जहाँ है ।
जब हम रो रहें हैं, आराम से वो सोते ।
ग़ैरों में दम कहाँ है,
अपने ही हैं डुबोते ।
हमको वही रुलाते
हम चैन जिनपे खोते !
जैसी है फ़ितरत उनकी वैसा ही बाँटते हैं ।
जैसा ईमान उनका वैसे ही उनके पोते ।
ग़ैरों में दम कहाँ है,
अपने ही हैं डुबोते ।
हमको वही रुलाते
हम चैन जिनपे खोते !
उनके जहाज में तुम बैठ के ना जाना
अपने जहाज हैं तो दरिया में लगाओ गोते ।
ग़ैरों में दम कहाँ है,
अपने ही हैं डुबोते ।
हमको वही रुलाते
हम चैन जिनपे खोते !