ग़लती करना प्रकृति हमारी
गलती करना प्रकृति हमारी, संस्कृति है कर लें स्वीकार
अनुदिन प्रगति हमारी होगी, यदि गलती का करें सुधार
अपनी गलती के कारण यदि, लगे किसी के दिल पर चोट
हमें चाहिए क्षमा मांग लें, लें न बहाने की हम ओट
किसी दीन को पीड़ा पहुंचे, तो अपने को है धिक्कार
अनुदिन प्रगति हमारी होगी, यदि गलती का करें सुधार
भले समाज करे निन्दा या, हो जाए अपना नुकसान
किन्तु चाहिए बिना झिझक के, गलती अपनी लें हम मान
जब हम जागें तभी सवेरा, कहते संत पुकार – पुकार
अनुदिन प्रगति हमारी होगी, यदि गलती का करें सुधार
लें न कभी अनीति का सम्बल, करें न कभी किसी को तंग
दृष्टा बन देखें दुनिया को, नियम नीति के करें न भंग
दूर भगाएं एक एक कर, अपने मन के सभी विकार
अनुदिन प्रगति हमारी होगी, यदि गलती का करें सुधार
महेश चन्द्र त्रिपाठी