ग़म के फ़साने सुनाले मुझको
जो भी करने हैं कर दर्द के हवाले मुझको
कौन है आज यहाँ जो कि सम्भाले मुझको
माँ के दर जो बढ़ने लगे है कदम मेरे
फूल लगते हैं मेरे पांव के छाले मुझको
शब्दों को हमने पिरोया है तेरे नाम से ही
गुनगुना , और तरन्नुम से भी गाले मुझको
भर दूंगी दामन खुशियों से तुम्हारा मै
जिंदगी में तेरी अपना बनाले मुझको
छोड़कर ना जाऊंगी ये आंगन तुम्हारा मैं
चाहे जितना भी ऐ यार सताले मुझको
दर्द दिल में क्यों छुपाकर जीए जा रही हो
गम के फ़साने कँवल खुल के सुनाले मुझको
बबीता अग्रवाल #कँवल