ग़मगीन ग़रीब किसान रहें
बिजली चमकै बदरा गरजै अब का हुइयै भगवान कहें,
उखड़ै जब छाजन झोपड़ियाँ बच हाड़ रहें अरु प्रान बहें।
बटरी बगरी सब सेल धरी कितनौं कबलौ नुकसान सहें।
करपा बिखरे सब खेत डरे ग़मगीन ग़रीब किसान रहें।
दीपक चौबे ‘अंजान’
बिजली चमकै बदरा गरजै अब का हुइयै भगवान कहें,
उखड़ै जब छाजन झोपड़ियाँ बच हाड़ रहें अरु प्रान बहें।
बटरी बगरी सब सेल धरी कितनौं कबलौ नुकसान सहें।
करपा बिखरे सब खेत डरे ग़मगीन ग़रीब किसान रहें।
दीपक चौबे ‘अंजान’