ग़ज़ल __तेरी य़ादें , तेरी बातें , मुझे अच्छी नहीं लगतीं ,
दिनांक,,,13/09/2024,,,,
बह्र,,,1222 1222 1222 1222 ,
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ग़ज़ल..
1,,
तेरी य़ादें , तेरी बातें , मुझे अच्छी नहीं लगतीं ,
वो फ़रियादें , मुलाकातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं ।
2,,,
चली जाती थी मंज़िल की तरफ़ मैं रोज़ जाने क्यूं ,
सफ़र तन्हा जो की बातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं ।
3,,,
बड़ी मुश्किल से खुद को कैद में रक्खा कभी मैने,
अभी हँस्ती हुई शामें , मुझे अच्छी नहीं लगतीं ।
4,,,
बहुत थी सख्त राहें भी, ग़जब पत्थर पे चलना भी ,
वो हिम्मत की वो बरसातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं ।
5,,,
मेरा दिल रोज़ खिंचता जा, रहा है बस तेरी जानिब ,
वहाँ होती , हैं जो बातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं ।
6,,,,
न हो एहसास जब हो ‘नील’ शबनम,चांद गुलशन भी ,
गुज़रती थी जो फिर रातें, मुझे अच्छी नहीं लगतीं ।
✍नील रूहानी …13/09/2024,,,
( नीलोफ़र खान )