ग़ज़ल _ रोज़ तन्हा सफ़र ही करती है ,
आदाब दोस्तों __
दिनांक ,,,22/08/2024,,,
बह्र ,,,, 2122 – 1212 – 22,,
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🌾 गज़ल 🌾
1,,,
रोज़ तन्हा सफ़र ही करती है ,
जिन्दगी टूट कर बिखरती है ।
2,,,
आसमां से ज़मीं के रिश्तों में ,
बिजलियों सी कभी उतरती है।
3,,,,
ज़िन्दगी जिंदगी की खातिर ही ,
जाने क्यूँ इंतिज़ाम करती है ।
4,,,
वोह परदेस के घरौंदे में ,
अश्क़ ज़ारों क़तार करती है ।
5,,,
वो भी नादान सा बना रहता ,
लाख वो उस पे वार करती है ।
6,,,
गुल खिला कर सभी जलाए क्यूँ ,
राख क्यूँ तार तार करती है ।
7,,,
जो गया लौट कर नहीं आया ,
‘नील’ क्यूँ इंतिज़ार करती है ।
✍नील रूहानी,,22/08/2024,,,
( नीलोफ़र खान ) 🍁🍁🍁