ग़ज़ल _ मिरी #मैयत पे रोने मे…..
छुपा लेता तुझे यारा किसी -दिल के जो कोने में।
हरज तुझको मगर था क्या बता मेरा जो होने में।
मिली तुझको जो रुस्वाई वफाओं को डुबोने से,
नयी फिर बात क्या कोई यूँ ही पलकें भिगॊने में।
बनेगी जब निगाहों में तिरी,यादों की परछाई ,
नजर तुमको न हम आये ,सलवटों के बिछौने में।
सबब पूछो ना हमसे अब तुम्हारी बेवफाई का,
किया नीलाम है खुद को,वफाओं के निभाने में ।
इन्ही अश्कों के धारे में,भिगोया है बहुत खुद को,
पड़े ना अब फरक कोई मिरी मॆयत पे रोने में।
✍शायर देव मेहरानियाँ _ राजस्थानी
(शायर, कवि व गीतकार)