ग़ज़ल _ बादल घुमड़ के आते , ⛈️
नमन मंच 🙏🌹
दिनांक _ 13/07/2024
बह्र_221_ 2122_ 221_ 2122
💖#ग़ज़ल 💖
1,,,
बादल घुमड़ के आते , बिजली को साथ लाते,
दिन भर थकन न उतरी , रो रो मुझे बताते ।
2,,,
सावन ने आ के मेरा , क्यूं चैन ऐसे छीना ,
कोयल कुहुक के बोली , दिन रात तुम सताते ।
3,,,
यारा गुज़ार दी जब , ये ज़िंदगी क़सम से ,
दिलदार रूह गुज़री , अब क्यूं गले लगाते ।
4,,,
परछाइयां भी खोयीं , किसको कहें ये हमदम,
आफ़ात की घड़ी थी, कैसे उसे बचाते ।
5,,,
तन्हा न कट सके दिन, ढूंढे है साथ तेरा ,
गर ‘ नील’ तुम न आते , तो हम कज़ा बुलाते ।
✍️ नील रूहानी ,,,13/07/2024,,
( नीलोफर खान)