ग़ज़ल _ आख़िरी आख़िरी रात हो ।
एक गज़ल ,, एक खयाल ,,,
बह्र __ 212 – 212 -212
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1,,,
आखिरी आखिरी रात हो ,
जिन्दगी तुझ से भी बात हो ।
2,,,
हम कभी सोचते हैं बहुत ,
खुद से खुद की मुलाक़ात हो ।
3,,,
बे वजह भागती जाये क्यूँ ,
रुक ज़रा जीत हो मात हो ।
4,,,
शोर बरपा हुआ हर तरफ़ ,
क्यूँ भयानक से हालात हो ।
5,,,
रोक दो , तोड़ना है बुरा ,
सच के भी रूबरू घात हो ।
6,,,
बस करो, कर भला हो भला ,
चाँदनी ‘नील’ सौगात हो |
✍नील रूहानी ,, 05/06/23,,
( नीलोफ़र खान)