ग़ज़ल _ आइना न समझेगा , जिन्दगी की उलझन को !
आदाब दोस्तों 🌷
दिनांक,,,26/07/2024,,,,
बह्र,,,,212 -1222 – 212 – 1222 ,,,,
काफ़िया__ अन,,,/,,रदीफ़__ को ,,,,
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🌷 गज़ल 🌷
1,,,,
आइना न समझेगा , जिन्दगी की उलझन को !
मिल के बात सुलझा लो,छोड़ दो ये अटकन को !!
2,,,,
शादियाँ ग़रीबों की , बेटियों की क्या होंगी !
ले गया है दूल्हा भी , चाँदनी में दुलहन को !!
3,,,,
हो रहे मशीनों से , काम सारे इंसाँ के !
अब तबीब क्या जाने ,आदमी की धड़कन को !!
4,,,,
आज आदमी भी , अश्क़ों से ही नहाता है !
लूट लो सभी धन को ,छोड़ दो ये जनधन को !!
5,,,,
दिलजलों से पूछो तो , बेच क्यूँ दिये सारे !
अब बचा न पाया है जिस्म अपने करधन को !!
6,,,,
घर में रोज़ उठती हैं , आज कल ये दीवारे !
टूटते हैं घर तन्हा , रोकता न अनबन को !!
7,,,,
खून खून का प्यासा ,नफरतें ये कैसी है !
प्यार से बना लेना , यार अपने दुश्मन को !!
8,,,,
आइये , मुहब्बत की , फ़स्ल एक बोते हैं !
खुशनुमा बनाते हैं ,’नील’ आज गुलशन को !!
✍नील रूहानी,,26/07/22,,,🌷
( नीलोफ़र खान )💖