ग़ज़ल
चमक-दमक से परे, सादगी की बात करें.
पकड़ के हाथ चलो दोस्ती की बात करें.
सुकून कुछ तो दिले-बेकरार को आये,
नज़र मिला के कभी बेखुदी की बात करें.
झिझकते मिल रहे शब्दों का आवरण बदलें,
हैं खुशमिज़ाज तो क्यों बेरुखी की बात करें?
निकल के दूर, घुटन से भरी फिज़ाओं से,
बगल में माँ के ज़रा, ताज़गी की बात करें.
तमाम लोग यहाँ बेदिली में उलझे हैं,
बिठा के पास उन्हें खुशदिली की बात करें.
मिले हो आज बहुत दिन के बाद, बैठो तो,
खलिश मिटा के, चलो, ज़िन्दगी की बात करें.
सुनेंगे दिल की, हमें क्या समझ ज़माने की?
हो पास तुम,तो भला क्यों किसी की बात करें?
रश्मि ‘लहर’