ग़ज़ल
आओ चलें चलकर उधर देखें रचें मंज़र नये
चलने लगें हैं पीठ पीछे अब इधर खंंज़र नये//1
हमसे नहीं अब तो रहा रिश्ता कोई उनका ज़रा
हमने सुना है मिल गये उनको कोई दिलबर नये//2
आता नहीं आराम है सुन गोलियाँ खाई बहुत
बचना अगर चाहूँ लगेंगें कुछ मुझे नश्तर नये//3
हिम्मत लिये ज़ज्बा लिए चलते चलो चाहे तन्हा
तैयार होंगे आपके इकदिन यहाँ लश्कर नये//4
डूबो फिरो तुम इश्क़ में पर सावधानी भी रहे
पैदा हुए हैं आजकल सपनों के कुछ तस्क़र नये//5
आँखें ख़ुली रखकर चलो विश्वास करना मत अँधा
अकसर वही छलिया मिले दिखते रहे रहबर नये//6
औक़ात क्या सब जानते तेरी यहाँ कितनी क़दर
तुमने सुनो हर रात ही बदले यहाँ बिस्तर नये//7
हमसे ज़ुदा कोई नहीं हम हैं यहाँ दिल के बड़े
नदियाँ मिलें सागर बनें आशिक़ हुए खुलकर नये//8
सोना कहो चाँदी कहो लोहा कहो चाहे मुझे
हर हाल में ‘प्रीतम’ दिखें मानव नये शायर नये//9
आर. एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल
शब्दार्थ-
मंज़र- दृश्य, ख़ज़र- कटार/चाकू, दिलबर- माशूक़/प्रीतम, लश्कर- समूह, तस्कर- चोर/स्मगलर, रहबर- मार्गदर्शक