ग़ज़ल
उठाते हैं क़सम वो जान देने की मुहब्बत में
उन्हें पर दूर पाते हैं किसी भी हम क़यामत में/1
कोई तूफ़ान आया तो हिमालय बन भगाऊँगा
हवाओं से मगर वो ख़ौफ़ खाते हैं हक़ीक़त में/2
कहा हमने सुनाओ हाल क्या है आजकल तेरा
कहा अच्छा भला हूँ यार दुश्मन की हिफाज़त में//3
जहाँ देखा सुना हमने बड़े चर्चे तुम्हारे थे
करुणा त्याग चाहत प्रेम सब देखे इबादत में//4
तुम्हारे हुस्न का जलवा सुना घायल हुआ तबसे
मगर देखा बिना मैक़ब खड़ा तब से बग़ावत में//5
तेरी ज़ुल्फ़ें घटा सावन बिखेरें बूँद शबनम-सी
ज़रा छूकर इन्हें देखा खिंची आई शहादत में//6
नज़र तेरी ग़ज़ब जानाँ किया मदहोश दिल मेरा
मगर जब होश आया था किसी डायन की रहमत में//7
ग़रीबी में भली बातें भी साज़िश ही लगा करती
कमी वरना नहीं थी इक मिरी चाहत शराफ़त में//8
गुमाँ यूँ दंभ का टूटे गिरे ज्यों फूल टहनी से
खिला तब प्यार था ‘प्रीतम’ न सदका अब हिमायत में//9
आर. एस. ‘प्रीतम’