ग़ज़ल
न समझो शोर में शामिल वो सन्नाटा नहीं होगा ।
जो पूरा है अभी तक वो कभी आधा नहीं होगा ।।
अगर सच है तो सच ही है, अगर है झूठ तो क्या सच ?
ख़ुदा है तो ख़ुदा होगा, ख़ुदा जैसा नहीं होगा ।।
सुनाएँगे जहां को वो तो केवल दास्तां अपनी ।
पता है उनके होंठों पर मेरा किस्सा नहीं होगा ।।
बड़े ही शौक़ से उसने हमारे घर जलाये थे ।
मगर ख़ुद खाक होगा वो कभी सोचा नहीं होगा ।।
तबाही का अजब मंज़र दिखा कर कल गया था जो ,
तो क्या वो सरफिरा तूफ़ां कहीं ठहरा नहीं होगा ?
बड़ी उम्मीद ले कर सुब्ह उठता हूँ हरेक दिन मैं ।
बहुत मुमकिन है अब कोई यहाँ भूखा नहीं होगा ।।
बदल जाएँ मनाज़िर सब, सभी किरदार भी लेकिन,
तेरा नाटक पुराना है “नज़र” बदला नहीं होगा ।।
Nazar Dwivedi